Nidhi Saxena

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दो जिस्म एक जान



दो जिस्म एक जान हुए हम ,
उस दिन जब तुमसे रूबरू हुए हम ।
भरी महफिल में भी तनहा थे हम ।
एक दूजे की नजरो में खोए थे हम ।
कुछ इस तरह अपनी ,
नजरो के आगोश में लिए मुझे तुमने , की दो जिस्म एक जान हुए हम ।
               नीर (निधि सक्सैना)

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3 Comments

Sachin dev

14-Dec-2022 03:37 PM

Well done

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VIJAY POKHARNA "यस"

14-Dec-2022 07:56 AM

बहुत खूब मिलन आत्मा का आत्मा से मिलन था , वह ना जाने किस जन्म कि प्यासी थी । भरी महफिल में तन्हा नहीं थे, अंतरात्मा एक दूसरे को खोज रही थी। नजरे तो मिलना एक दिखावा था, वास्तव मे आत्मा का परात्मा से मिलन था।। विजय पोखरणा "यस"

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Abhinav ji

14-Dec-2022 07:39 AM

Nice

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